Friday, January 29, 2010

कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है...

कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है
मै तुझसे दूर कैसा हू तू मुझसे दूर कैसी है
ये मेरा दिल समझता है या तेरा दिल समझता है
मोहबत्त एक अहसासों की पावन सी कहानी है
कभी कबीरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है
यहाँ सब लोग कहते है मेरी आँखों में आसूं है
जो तू समझे तो मोती है जो ना समझे तो पानी है
मै जब भी तेज़ चलता हू नज़ारे छूट जाते है
कोई जब रूप गढ़ता हू तो सांचे टूट जाते है
मै रोता हू तो आकर लोग कन्धा थपथपाते है
मै हँसता हू तो अक्सर लोग मुझसे रूठ जाते है
समंदर पीर का अन्दर लेकिन रो नहीं सकता
ये आसूं प्यार का मोती इसको खो नहीं सकता
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले
जो मेरा हो नहीं पाया वो तेरा हो नहीं सकता
भ्रमर कोई कुम्दनी पर मचल बैठा तो हंगामा
हमारे दिल कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोह्बत्त का
मै किस्से को हक्कीकत में बदल बैठा तो हंगामा
बहुत बिखरा बहुत टूटा थपेडे सह नहीं पाया
हवाओं के इशारों पर मगर मै बह नहीं पाया
अधूरा अनसुना ही रह गया ये प्यार का किस्सा
कभी तू सुन नहीं पाई कभी मै कह नहीं पाया

Wednesday, January 27, 2010

कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है

कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है
मै तुझसे दूर कैसा हू तू मुझसे दूर कैसी है
ये मेरा दिल समझता है या तेरा दिल समझता है
मोहबत्त एक अहसासों की पावन सी कहानी है
कभी कबीरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है
यहाँ सब लोग कहते है मेरी आँखों में आसूं है
जो तू समझे तो मोती है जो ना समझे तो पानी है
मै जब भी तेज़ चलता हू नज़ारे छूट जाते है
कोई जब रूप गढ़ता हू तो सांचे टूट जाते है
मै रोता हू तो आकर लोग कन्धा थपथपाते है
मै हँसता हू तो अक्सर लोग मुझसे रूठ जाते है
समंदर पीर का अन्दर लेकिन रो नहीं सकता
ये आसूं प्यार का मोती इसको खो नहीं सकता
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले
जो मेरा हो नहीं पाया वो तेरा हो नहीं सकता
भ्रमर कोई कुम्दनी पर मचल बैठा तो हंगामा
हमारे दिल कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोह्बत्त का
मै किस्से को हक्कीकत में बदल बैठा तो हंगामा
बहुत बिखरा बहुत टूटा थपेडे सह नहीं पाया
हवाओं के इशारों पर मगर मै बह नहीं पाया
अधूरा अनसुना ही रह गया ये प्यार का किस्सा
कभी तू सुन नहीं पाई कभी मै कह नहीं पाया
हा मुझे कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है
इमरान हैदर
भागीरथी विहार
दिल्ली 110094

Saturday, January 23, 2010

नज़्म/ मेरे महबूब

मेरे महबूब !

उम्र की
तपती दोपहरी में
घने दरख्त की
छांव हो तुम
सुलगती हुई
शब की तन्हाई में
दूधिया चांदनी की
ठंडक हो तुम
ज़िन्दगी के
बंजर सहरा में
आबे-ज़मज़म का
बहता दरिया हो तुम
मैं
सदियों की
प्यासी धरती हूं
बरसता-भीगता
सावन हो तुम
मुझ जोगन के
मन-मंदिर में बसी
मूरत हो तुम
मेरे महबूब
मेरे ताबिन्दा ख्यालों में
कभी देखो
सरापा अपना
मैंने
दुनिया से छुपकर
बरसों
तुम्हारी परस्तिश की है…

Tuesday, January 19, 2010

व्यंग्य/ मोहे इंडिया न दीजौ

वैसे तो यमलोक में अनगिनत ऐसी आत्माएं हत्या, आत्महत्या का शिकार हो प्रेतयोनि में बरसों से अपने फैसले के इंतजार में बैठी हैं कि कब जैसे उनका फैसला यमराज करें और वे प्रतयोनि से मुक्त हो जिस योनि में उनका हक बनता है उस योनि में जन्म ले यमपुरी के भयावह दृश्‍यों से मुक्त हों। पर यमराज की भी अपनी विवशता है। बेचारे वे तो चाहते हैं कि बंदे अपनी मौत मरकर मृत्युलोक से आती रहें और वहां पर फैसले के तुरंत बाद अपने कर्मों के आधार पर अगला जन्म लेती रहें ताकि यमलोक में भी रष न हो, कोलकाता की तरह। पर उनके चाहने से क्या होता है? जिनके अभी भी बरसों से मृत्युलोक की अदालतों में फैसले हो ही नहीं पाए तो वे उनके फैसले अपनी अदालत में कैसे करें?

ऐसे हजारों चेहरे मायूस होकर मेरे देश की अदालतों की ओर टकटकी लगाए यमलोक से देख रहे हैं। उनमें एक लड़की भी है। प्रेस फोटोग्राफरों से लेकर नाई की दुकान पर मूंछ मुंडवाने आए पाठकों को अखबार में आज के दौर में लड़की की फोटो के अतिरिक्त कुछ और दिखता ही नहीं। अब अखबार तो बेचना है भैया! पढ़ने के लिए अखबार कम ही तो बिकता है। सो मेरे साठ के पास पहुंचे मित्र प्रेस फोटोग्राफर रोज एक फोटो जरूर छापते हैं जैसे- अगर धूप निकल आई हो तो खिलखिली धूप का आनंद लेती लड़की। अगर बारिश हो रही हो तो- बारिश में भीगने का आनंद लेती हुई लड़की। अगर गर्मी पड़ रही हो तो- गर्मी में पसीना-पसीना होती लड़की। होली हो तो- होली के रंग में रंगी लड़की। दीवाली हो तो- पटाखे चलाती लड़की। लोहड़ी हो तो- लोहड़ी के गीत गाती लड़की। अब तो कई बार लगने लगता है कि जिस दिन अखबार में कुछ न कुछ करती हुई लड़की का फोटो न छपा हो तो जैसे अखबार कोरा ही हो।

तो वह लड़की बरसों से उदास सी यमलोक के एक कोने में बैठी थी, अदालत से अपने फैसले का इंतजार करती। यह सोचती कि- अगर मैं आत्महत्या के बाद एकदम पुन: जन्म ले लेती तो आज अपना केस खुद लड़ती। फैसले के इंतजार में इतने साल खराब कर उसने बहुत बड़ी गलती की। ……….और अदालत थी कि बरसों बीत जाने के बाद भी वहीं का वहीं। वही दाव पेंच। वही धन का बल। वही पद का बल। अदालत दलीलों के आगे निर्बल।

अगर गलती से मेरे प्रेस फोटोग्राफर मित्र वहां पहुंचने की हड्डियों में हिम्मत रखते तो फोटो छाप मारते- यमलोक के एक कोने में उदास बैठी लड़की। पर बेचारे अब तो पार्क लेडीज पार्क तक ही चल पाते हैं।

…… कि एकाएक पता नहीं क्या हुआ कि वह बरसों से उदास लड़की हंसने लगी। बरसों मौका मिलते ही यमराज ने भी उसे हंसाने कि बहुत कोशिश की थी पर वह नहीं हंसी तो नहीं हंसी। ज्यों ही यमलोक के कर्मचारियों ने यमराज को उसके हंसने की सूचना दी सूचना दी तो वे सारे काम काज छोड़ उस हंसती हुई लड़की के पास जा पहुंचे। उन्होंने देखा कि सच्ची को लड़की हंस रही है। पहली बार उन्होंने किसी लड़की को हंसते हुए देखा। नहीं तो उन्होंने अधिकतर वे लड़कियां ही देखी थीं जो मां के गर्भ में जाते ही रोना शुरू कर देती हैं और रोती हुईं ही पैदा होने से पहले उनके पास उदास चेहरे लिए या फिर दहेज की बलि चढ़ अधजली उनके पास पहुंच फिर रोते रोते कहतीं, ‘हे यमराज! अगले जनम हमें बेटा ही कीजौ!’

‘सभी आत्माएं अगर बेटा ही बनने का निवेदन करने लगीं तो तो सृष्टि चलेगी कैसे?’

‘ये हमें नहीं पता। नहीं तो हम वहां नहीं जाएगीं आपकी कसम।’

उसे खिलखिला कर हंसते हुए देखने के बाद यमराज ने उससे पूछा, ‘बिटिया! आज ऐसा क्या मिल गया जो तुम यों हंस रही हो?’

वह बिन कुछ कहे काफी देर तक हंसती रही। बरसों से हंसी जो नहीं थी। उसको हंसते देख यमराज ने जिनको नरक की सजा सुनाई थी वे भी नरक की यातनाओं को भूल हंसने लगे थे। उस लड़की ने तब अपनी हंसी रोक कहा, ‘अब मुझे न्याय मिलने की आशा फिर जगी है।’

‘बहुत बहुत बधाई! तुम सयानी हो तो एक बात बताओ?’

‘कहो अंकल!!’

‘जब तुम्हें वहां पर न्याय मिल जाएगा और हम भी तुम्हें यहां से मुक्त कर देंगे तो तुम कहां अगला जन्म लेना चाहोगी?’

‘अंकल! मुझे नरक दे दीजौ पर इंडिया न दीजौ!

व्यंग्य/ मोहे इंडिया न दीजौ

वैसे तो यमलोक में अनगिनत ऐसी आत्माएं हत्या, आत्महत्या का शिकार हो प्रेतयोनि में बरसों से अपने फैसले के इंतजार में बैठी हैं कि कब जैसे उनका फैसला यमराज करें और वे प्रतयोनि से मुक्त हो जिस योनि में उनका हक बनता है उस योनि में जन्म ले यमपुरी के भयावह दृश्‍यों से मुक्त हों। पर यमराज की भी अपनी विवशता है। बेचारे वे तो चाहते हैं कि बंदे अपनी मौत मरकर मृत्युलोक से आती रहें और वहां पर फैसले के तुरंत बाद अपने कर्मों के आधार पर अगला जन्म लेती रहें ताकि यमलोक में भी रष न हो, कोलकाता की तरह। पर उनके चाहने से क्या होता है? जिनके अभी भी बरसों से मृत्युलोक की अदालतों में फैसले हो ही नहीं पाए तो वे उनके फैसले अपनी अदालत में कैसे करें?

ऐसे हजारों चेहरे मायूस होकर मेरे देश की अदालतों की ओर टकटकी लगाए यमलोक से देख रहे हैं। उनमें एक लड़की भी है। प्रेस फोटोग्राफरों से लेकर नाई की दुकान पर मूंछ मुंडवाने आए पाठकों को अखबार में आज के दौर में लड़की की फोटो के अतिरिक्त कुछ और दिखता ही नहीं। अब अखबार तो बेचना है भैया! पढ़ने के लिए अखबार कम ही तो बिकता है। सो मेरे साठ के पास पहुंचे मित्र प्रेस फोटोग्राफर रोज एक फोटो जरूर छापते हैं जैसे- अगर धूप निकल आई हो तो खिलखिली धूप का आनंद लेती लड़की। अगर बारिश हो रही हो तो- बारिश में भीगने का आनंद लेती हुई लड़की। अगर गर्मी पड़ रही हो तो- गर्मी में पसीना-पसीना होती लड़की। होली हो तो- होली के रंग में रंगी लड़की। दीवाली हो तो- पटाखे चलाती लड़की। लोहड़ी हो तो- लोहड़ी के गीत गाती लड़की। अब तो कई बार लगने लगता है कि जिस दिन अखबार में कुछ न कुछ करती हुई लड़की का फोटो न छपा हो तो जैसे अखबार कोरा ही हो।

तो वह लड़की बरसों से उदास सी यमलोक के एक कोने में बैठी थी, अदालत से अपने फैसले का इंतजार करती। यह सोचती कि- अगर मैं आत्महत्या के बाद एकदम पुन: जन्म ले लेती तो आज अपना केस खुद लड़ती। फैसले के इंतजार में इतने साल खराब कर उसने बहुत बड़ी गलती की। ……….और अदालत थी कि बरसों बीत जाने के बाद भी वहीं का वहीं। वही दाव पेंच। वही धन का बल। वही पद का बल। अदालत दलीलों के आगे निर्बल।

अगर गलती से मेरे प्रेस फोटोग्राफर मित्र वहां पहुंचने की हड्डियों में हिम्मत रखते तो फोटो छाप मारते- यमलोक के एक कोने में उदास बैठी लड़की। पर बेचारे अब तो पार्क लेडीज पार्क तक ही चल पाते हैं।

…… कि एकाएक पता नहीं क्या हुआ कि वह बरसों से उदास लड़की हंसने लगी। बरसों मौका मिलते ही यमराज ने भी उसे हंसाने कि बहुत कोशिश की थी पर वह नहीं हंसी तो नहीं हंसी। ज्यों ही यमलोक के कर्मचारियों ने यमराज को उसके हंसने की सूचना दी सूचना दी तो वे सारे काम काज छोड़ उस हंसती हुई लड़की के पास जा पहुंचे। उन्होंने देखा कि सच्ची को लड़की हंस रही है। पहली बार उन्होंने किसी लड़की को हंसते हुए देखा। नहीं तो उन्होंने अधिकतर वे लड़कियां ही देखी थीं जो मां के गर्भ में जाते ही रोना शुरू कर देती हैं और रोती हुईं ही पैदा होने से पहले उनके पास उदास चेहरे लिए या फिर दहेज की बलि चढ़ अधजली उनके पास पहुंच फिर रोते रोते कहतीं, ‘हे यमराज! अगले जनम हमें बेटा ही कीजौ!’

‘सभी आत्माएं अगर बेटा ही बनने का निवेदन करने लगीं तो तो सृष्टि चलेगी कैसे?’

‘ये हमें नहीं पता। नहीं तो हम वहां नहीं जाएगीं आपकी कसम।’

उसे खिलखिला कर हंसते हुए देखने के बाद यमराज ने उससे पूछा, ‘बिटिया! आज ऐसा क्या मिल गया जो तुम यों हंस रही हो?’

वह बिन कुछ कहे काफी देर तक हंसती रही। बरसों से हंसी जो नहीं थी। उसको हंसते देख यमराज ने जिनको नरक की सजा सुनाई थी वे भी नरक की यातनाओं को भूल हंसने लगे थे। उस लड़की ने तब अपनी हंसी रोक कहा, ‘अब मुझे न्याय मिलने की आशा फिर जगी है।’

‘बहुत बहुत बधाई! तुम सयानी हो तो एक बात बताओ?’

‘कहो अंकल!!’

‘जब तुम्हें वहां पर न्याय मिल जाएगा और हम भी तुम्हें यहां से मुक्त कर देंगे तो तुम कहां अगला जन्म लेना चाहोगी?’

‘अंकल! मुझे नरक दे दीजौ पर इंडिया न दीजौ!